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तुझ जैसी

  • Writer: Shikha M
    Shikha M
  • May 26, 2021
  • 1 min read

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एक आस थी ऐसी जो तुझ मे बसी,

दुनिया में कुछ कर जाने की ,

सपने थे बेशुमार आखो में,

लिए चमकीली रौशनी,

हर पल नया था हर पल में उमगं थी…………..l

क्योकि एक आस थी जो तुझ मे बसी ………….l


फिर एक दिन अचानक कहा पिता ने,

तमु अमानत हो किसी की, रित है पराई l

जो निभानी है जरुरी,

थामा माँ का हाथ , सीख गहृस्थी के काज,

एक दिन उठी डोली तरेी ,

शहर अलग था गांव अलग था l

रित अलग थी संसारअलग था l

अलग था हर अंदाज़ ,

और थे पिया के तनुकु मिज़ाज़ …………….l


अब न थी आखो में वो आस,

बस था तो एक काज,

गहृस्थ जिम्मेजारी निभाई ऐसे,

हर समय हर पल दिया अपनों का साथ………….l


माँ बनी निभाई रीत ,

कर एक नयी पीढ़ी की शरुआत,

चली आखो में ख्वाहिश छुपाये…………………..l


फिर आया एक दिन ऐसा जब बड़ी तेरी परछाई,

चली तरेे पीछे वो , छोटी सी जान,

कुछ तरेी जैसी कुछ तुझ सेअलग………………..l


नयी सोच में नई दिशा में,

ज़माने में चली बड़ी तेरी नन्ही परी……………….l


फिर उसने पूछा

क्या माँ मैं तझु जैसी ……………………..

तालीम दिलाई , सस्ंकार से सीचा,

उस कोमल पौधे को ,

और दी हिम्मत कुछ कर गजुर ने की,

बड़ी होकर जो एक आस बंधी………………………..l


आज वो फि र चली , वही आस लिए,

था उसे वही विश्वास, कुछ कर गजुरने के लिए,

क्योकि था वो तरेा ही अशं ,

तझु से जनि तझु बंधी ………………………………………...l


@mindfulzoya


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