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घर सा छोंका

  • Writer: Shikha M
    Shikha M
  • Apr 29, 2021
  • 2 min read

Updated: Apr 30, 2021



जब बचपन में खेला उसे खेल में,

तब न जान ते थे की क्या था वो l

खेल खेल में बनाया खाना,

कही पत्ते कही मिट्टी सेl

समझ आयी तो सिर्फ खशुबु आयी


घर की एक रसोई से……….l


अब वक्त था कुछ सिखने का,

दनिुनिया की रेस में दौड़ने का,

पापा की ख्वाहिश, माँ की आस को पूरा करने का

माँ कुछ अच्छ सा बनाकर युही मँहु में खिलाती,

इम्तहान मेंअव्वल आने का जूनु लिए ,

तब अहसास न था उस स्वाद का l

फरमाइशें थी हमारी जो परूी होती थी

बिना जेब के पसै ेदेखे,

हलवा पूरी, खीर, समोसा युही खाया करते थे


क्योकि अनोखा था वो घर का छोंका…..l


होश सभं ाला, आखँ ो में सपने लि ए,

चाह अलग थी, राह अलग थी,

मन मेंआशा लिए घर से निकले थे हम,

माँ ने बांधे थे ढेर सारे पकवान,

पहली बार अकेले घर से निकले थे हम,

कुछ करने की चाह मेंl

समय बिता अकेले थे हम , राह अलग थी बात अलग थी l

कुछ नए दोस्त ज़रूर थे,


लेकि न अब न थी वो रसोई न था वो छोंका…..l.


न खाने की महक थी न स्वाद l

पहले अनभुव कहता था , दोस्त नहीं,

अब दोस्त कहते है अनभुव नहीं,

खाना था स्वाद नहीं,

पकवान थे खशुबू नहीं,


रसोई थी लेकि न वो छोंका नहीं……..l


बड़े हुए जाना दनिुनिया को,

अब सपने भी परुे थेऔर जेब भी भरी,

दनिुनिया को सोचनेऔर समझने की समझ भी,

आशियाना भी अपना था l


लेकि न न था तो वो घर का छोंका…….l


परिवार भी आगे बढ़ा लेकिन आज भी याद आता है


वो घर का छोंका……….l


जो बहुत कुछ कह जाता था l

माँ का प्यार, घर का दलु ार,

पापा की डाट, भाई बहन का प्यार

वो पापा के जतू ेपहन कर घमू ना,

वो माँ का पहली बार स्कूल के लिए साडी पहननाl

जो बात तब थी वो अब नहीं,

जो प्यार तब था वो अब नहीं,

शायद इसलिए किसी ने कहा था उस वक़्त,

खालो ठीक से वरना बाद में याद आएगा


ये घर का छोंका………..l


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